एपीथिलियम


एपीथिलियम उत्तक

एपीथिलियम ऊतक   वह उत्तक होते हैं जो शरीर के विभिन्न कार्य तंत्रों को अलग करने का काम करते हैं यह तो थी एपीथिलियम उत्तक की परिभाषा अब आगे हम उनके बारे में और भी कुछ चीजें जानेंगे वह भी सीधी साधी अपनी भाषा में



कभी आपने यह यह नहीं सोचा की रक्त नसों में ही क्यों बहता है जो खाना होता है वह आहार नाल से ही नीचे क्यों जाता है वह अगल-बगल भी तो जा सकता है लेकिन उसी के नीचे ही क्यों जाता है तो उसका उत्तर है की एपीथिलियम ऊतक की कई सारी परतें इन विभिन्न तंत्रों को एक दूसरे से अलग करती है मतलब नसों की जो बाहर की लेयर है एक एपीथिलियम उत्तक की बनी हुई होती है इस प्रकार यही उत्तक पाचन तंत्र, स्वसन तंत्र, उत्सर्जन तंत्र आदि को एक दूसरे से अलग करते हैं । हिंदी भाषा में इन्हें कला या उपकला कहते हैं

         हमारी त्वचा भी एक एपीथिलियम उत्तक है क्योंकि यह हमारे शरीर के अंदर के भागों को बाहर से अलग करती है दूसरा काम तंत्रों को सुरक्षा प्रदान करना होता है जिसके ऊपर यह होती हैं यह कई प्रकार की होती हैं

  • शल्की उपकला वे उपकला है जो सबसे मोटी होती है एवं अष्टकोणी  होती है हमारी त्वचा इन्हीं ऊतकों की बनी होती है ।
  • स्तंभकार  जोकि स्तन के आकार की होती है आमाशय के भीतरी भागों में पाई जाती हैं हमारी आहार नाल में इन्हीं उसको की बनी होती है
  • रोमीकामया  यह वह उत्तक है जो स्तंभाकार ऊतकों के समान ही होते हैं परंतु इनकी ऊपरी सतह पर बालों जैसी संरचनाएं पाई जाती हैं जो ठीक उसी प्रकार लहरती रहती हैं जैसे खेत में गेहूं इनका प्रमुख कार्य शरीर में फंसे हुए हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालना होता है क्योंकि यह झाड़ू जैसा काम करती हैं
  • संवेदनशील उपकला यह वह उत्तक है जो अत्यधिक संवेदनशील होते हैं यह संवेदना ओं को इधर से उधर पहुंचाने में सहायता करते हैं यह कान आंख आदमी पाए जाते हैं




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